मैं नहीं दुर्भाग्य के सम्मुख झुकूँगा
आज जीवन में हुआ असफल भले ही !
एक पल भी साधना की भावना सोयी नहीं,
और जाऊँ हार, ऐसी बात भी कोई नहीं,
मैं नहीं सुनसान राहों पर थकूँगा
दूर, बेहद दूर हो मंजिल भले ही !
आज छाया है अमावस-सा अँधेरा सब तरफ,
पर, अभी कल मुस्कराएगा सबेरा सब तरफ,
मैं न मन की पंगु दुविधा में रुकूँगा
पास में चाहे न हो संबल भले ही !